1.jpg 1.jpg 1.jpg 1.jpg 1.jpg 1.jpg 1.jpg

{Ghisa Panthi Ashram Samalkha Panipat}


( Satguru Ratiram Ji Maharaj Gudari Wale Moji Ram )



{घीसा पंथी आश्रम समालखा पानीपत (सतगुरु रति राम जी महाराज गुदड़ी वाले मौजी साहेब}

सत साहेब जी.🙏

Homeमंगलाचरण***संध्या आरती(घीसा संत)******अथ ब्रह्म वेदी (सरलार्थ)*****अन्नदेव आरती(सरलार्थ) ****सूर्य गायत्री******संत साखी ****** संतो की वाणी ******गुरु परम्परा {घीसा संत} ***प्रदर्शनीकार्यक्रम (सूची)*आश्रम वर्णन*

अक्टूबर तालिक 2025

October Table
सत्संग की तारीख
Date Of Satsang

अक्टूबर 5, 2025,रविवार(शुक्ल चतुर्दशी)

पूर्णिमा की तारीख
DATE OF PURNIMA

अक्टूबर 6, 2025, सोमवार (आश्विन पूर्णिमा )

Share On WhatsupTrulli Ghisa Sahib Sandhya Aarti Ghisa Sant Ghisa das Ghisa Panthi Ghisa Sant Ashram

>घीसा साहेब

घीसा संत दरबार (संध्या आरती)  -

घीसा संत दरबार की आरती

कबीर कक्का केवल नाम है, बब्बा ब्रह्म शरीर। रा सब में रम रहा, ताका नाम कबीर।।

पानी से पैदा नहीं,श्वासा नहीं शरीर। अन्न आहार करता नहीं, ताका नाम कबीर।।

आरती सत्य पुरुष की कीजै, संध्या सांझ सवेरा लीजै। धीरज दीप ज्ञान की बाती, सुरति का घृत जले दिन राती।।

प्रेम थाल में दीपक घर लीजै, क्षमा भाव से आरती कीजै। गुरु है सब देवन के देवा, भव सागर से लावें खेवा ।।

गुरु है अलख पुरुष अविनाशी,गुरू बिन कटै न यम की फांसी। सकल श्रृष्टि के गुरु ही करता, भक्त हेतु चोला हे धरता ।।

चौथा पद गुरू ही ने दीना, तुरिया पद में आसन कीना। घीसा सन्त आरती गांवे, सन्तो सिर सांटे से भक्ति पांवै।।

संध्या आरती भरम अंधेरा, काम क्रोध मद लोम ने घेरा। झांझ बजे है मेरा तेरा, डिम पाखण्ड शंख ध्वनी टेरा ।।

ओषध बूटी करै बहुतेरा, झाड़ा झपटा सांझ सवेरा। सतगुरू करके पैसा हेरा,लाख यतन कर तुहीं न टेरा ।।

घीसा संत चरण का चेरा, बेगि छुड़ाओं गुरु मैं हूँ तेरा। अदली आरती अदल बखाना, कौली बुने बिहगम ताना।।

ज्ञान का राष्छ ध्यान की तुरिया,नाम का धागा निश्चय जुड़िया। प्रेम का पान कंवल की खाड़ी, सुरति का सूत बुने निज गाढ़ी।।

नूर की नाल फिरै दिन राती, जा कौली को काल न खाती। कुल का खूंटा धरनी में गाढ़ा, गहरा झीना ताना गाढ़ा।।

निरत की नाल बुने जो कोई,सो तो कौली अविचल होई। रेजा राजिक का बुन दीजै, इस विधि सतगुरू साहेब रीझे।।

दास गरीब सोई सत कौली, ताना बुनि है अर्श अमोली। पांच तत्व गुदड़ी परवीना, तीन गुणों से ठाढ़ी कीना ।।

जिसमें जीव ब्रह्म अरू माया, ऐसा समरथ खेल बनाया। जीवन पांच पच्चीसो लागे,काम क्रोध मद लोम इन्हीं से जागे।।

इस गुदड़ी का करो विचारा, देखों संतो अगम अपारा। चन्द्र सूरज दोउ पयोंद लागे, गुरू प्रताप ते सोवत जागै।।

शब्द की सूई सुरति का डोरा,ज्ञान का टोप हमरे सतगुरू जोड़ । इस गुदडी की करो हुसियारी, दाग ना लागे देख विचारी।।

सुमति का साबुन सतगुरु धोई, कुमती महल कुं डारै कोई। जिन गुदड़ी का किया विचारा, उनको फेटे सिरजनहारा।।

गुदड़ी जाप जपी परभाता, कोटि जनम का पातक जाता । ज्ञान गुड़ी पढ़े मध्याना, सो नर पावै पद निरवाणा।।

संध्या सुमिरण जो नर करि है, सो प्राणी भवसागर तरि हैं। फुट गये कश्मल भया अलेखा, इन नैनों से साहेब को देखा।।

अंहकार अभिमान बिडारा, घट में चौका कर उजियारा। घट में तुलसी दर दर मूला, अष्ट कमल दल ही में फूला।।

कहै कुछ और बतावें, ठांव ठांव का मेद लखावें।

युक्ति जंजीर बांध जो राखै, अगम अगोचर खिड़‌की झाखै। तनमन जीत भये परवाना, जिन्होने पाया पद निवाणा।

शैली शील विवेक की माला, दया की टोपी तन धर्मशाला। नेती धोती पवन जनेऊ, अजपा जपै सो जाने मेऊ।

शून्य मण्डल की फेरी देई, अमृत रस की मिक्षा लेई। दिल का दर्पण दुविधा धोई, सो योगेश्वर पक्का होई।

संशय शोक सकल भ्रम जारा, पांच पच्चीसों परगट मारा। सत का तेल दया की बाती, देखों दीप जलै दिन राती।

अनजामन से जामन भया, जामन से मया मूल। चहुर्दिशि फूटी वासना, मया कली से फूल।

कहैं कबीर धर्मदास से, लिख परवाना दीन्हा। आदि अनत की वीनती, उसी लोक को चिन्हा।

गुदड़ी पहरी आप अलेखा, जिन परगट हो आप चलाया मेषा। गुदड़ी सुरनर मुनि जन लीनी, साहब, कबीर बक्श जब दीनी।

(पांच तत्व और तीन गुणों की गुदड़ी का शब्द साहब कबीर ने नव नाथ और चौरासी सिद्धों को कह कर सुनाया)

खाकी देह कर्म विकारी। कैसे आरती करूं तुम्हारी।। आरती करे कुरम जल रंगा। भार लिए इक्कीस ब्रह्मण्डा ।।

आरती करे सहज धर्मराई। तीन लोक जिन की ठकुराई ।। आरती करै निंरजन देवा। तैतीस करोड़ देव कर सेवा ।।

आरती करे अष्ट कमल दल भवानी। चन्द्र सूरज तारागण खानी।। आरती करे अन्न अरू पानी। जिनकी भक्ति नारायण जानी।।

आरती करे संत मुनि ध्यानी। अंश वंश देते परवानी।। साहब कबीर की आरती करते है निज दास अमरलोक डेरा भया मिट गये यम के त्रास।

.

सुख साहेब से लाओ तारा, अनहद शब्द होत झनकारा। कहैं कबीर जाऊं बलिहारी, अविगत नाम आरती थारी।

अदली आरती अदली अजूनी, नाम बिना है काया सूनी। झूठी काया खाल लुहारा। इंड़ा पिंगला सुषमन द्वारा।

कृतघ्नी भूलै नर लोई, जा घट निश्चय नाम न होई। सो नर कीट पंतग भुवंगा, चौरासी में धरते अंगा।

उदबुद खानी भुगते प्राणी, समझे नहीं शब्द सैलानी। हम है शब्द शब्द हम माही, हम से भिन्न और कछु नहीं।

पाप पुण्य दो बीज बनाया, शब्द भेद किसी बिरले ने पाया। शब्द वजीर शबद ही राजा, शब्द ही सर्व लोक में गाजा।

शब्द ही स्थावर जंगम योगी, दास गरीब शब्द रस भोगी। अदली आरती अदल जमाना, यम जोरा मेटो तलवाना।

धर्म राय पर हमरी धाई, नौबत नाम चढ्‌यो ले माई। चित्र गुप्त के कागज कीरूं, युगम युगन मेटुं तकसीरू।

अदली ज्ञान अदल एकरासा, सुन कर हंसा पावें त्रासा। अजराइल जोरा वरदाना, धर्मराय का है तलवाना।

भेटू तलब करूं तागीरा, मिल गये दास गरीब कबीरा। अदली आरती अदल उचारा, सत्य पुरुष दीजो दीदारा। कैसे कर छुटै चौरासी, योनी संकट बहुत त्रासी।

युगन युगन हम कहते आये, भवसागर से जीव छुड़ाये। कर विश्वास श्वास में पेखो, या तन में मन मुरति देखो।

श्वासा पारस भेद हमारा, जो खोजे सो उतरे पारा। श्वासा पारस आदि निशानी, जो खोजे सो है दरबानी।

हरदम नाम सुहंगम सोई, आवागमन बुहरि नहीं होई। अब तो चढ़े नाम के छाजे, गगन मंडल में नोबत बाजे।

अगर अलील शब्द साहिदानी, दास गरीब बिहंगमवानी। अदली आरती अदल पठाऊं, युगन युगन का लेखा लाऊं।

जा दिन होते पिन्ड न पिराणा, नहीं पानी पवन जर्मी असमाना। कच्छ मच्छ कुरम नहीं काया, चन्द्र सूरज नाहीं दीप बनाया।

शेष महेश गणेश न ब्रह्म, नारद शारद ना विश्वकर्मा। सिद्ध चौरासी ना तैंतीसों, नव अवतार नहीं चौबीसों।

पांच तत्व नाहीं गुण तीनों, नाद बिन्दु नाही घट सीनों। चित्रगुप्त नहीं कृतृम बाजी, धर्मराय नहीं पण्डित काजी।

बूं घूं कार अंनत युग बीते, जा दिन कागद कहो किन चीते। जब तो थे हम तखत खंवासा, तन के पाजी सेवक दासा।

शंख युगन परलो परवाना, सत्य पुरुष के संग रहना। दास गरीब कबीर का चेरा, सत्य लोक अमरापूर डेरा।।

संध्या आरती सुकृत कीना, गुरु चरणों में चित हम लीन्हा। गुरु की महिमा अपरम्पारा, नाम लिये से होय गुजारा।

गुरू नाम का जिन्हे अधारा, फिर नहीं देखे यम का द्वारा। ऐसी लीला अपरम्पारा, तीन लोक से भेद जो न्यारा।

दुनिया दार फकीर न होई, आप ही आप निरन्जन सोई। ना सरभंगी ना ब्रह्मचारी, सब में खेले आप खिलारी।

सतगुरू मिलयों सहज पद पाया, अपना राह अरू आप बताया। बन्दी छोड़ खेखड़ा आया, जीतादास को आन छुड़ाया।

संख्या आरती शुकर सेवरा, सतगुरू साहेब दास मैं तेरा। करम भरम का करो निवेड़ा, चौरासी का मेटो फेरा।

जन की गुनाह माफ कर दीजो, औगुण मेरे चित मत लीजों। तुम दाता हम सदा भिखारी, मेटो पीर सकल दुख भारी।

बन्दी छोड़ है नाम तुम्हारा, बन्द छुड़ाओ म्हारे सिरजन हारा। जीतादास आरती गावें, सतगुरू शरणें सब सुख पावें।

शुकर साहब घीसा अविनाशी, भली संभाली नाव बह जाती। आरती करूं साहेब गुरू थारी, ऐसी महिमा अपरम्पारी।

कैसे दुर्मति घोई हमारी, मैं अधीन हूं शरण तुम्हारी। काटे जन्म कर्म के फंदे, नेत्र खोले हम थे अंधे।

हम अंधों को किया उजाला, भरम गढ्ढ का तोड़ा ताला। माया मोह का जीता पाला, मेहरबान गुरू ऐसे दयाला।

हरदम करे हमारी प्रतिपाला,तुमसा ना कोई दीनदयाला। घीसा सन्त साहेब गुरू म्हारे, जीतादास कूं लिये उबारे।

अदली आरती अदल अमाना, सतगुरू लाये अमर परवाना। सुनसुन हंसा हुये दिवाना, मार हटाया यम का थाना।

अमर लोक को किया पयाना, भवसागर में बहुरि न आना। घीसा सतगुरू मिले अमाना, जीतादास कूं दिया परवाना।

आरती सत्य स्वरूप तुम्हारी, तन मन धन जिनको बलिहारी। बड़ा भरोसा तुम्हारा भारी, काहू विधि से लिये उभारी।

हाड़ मांस अरू चाम का चोला, परगट हो हरि यामें बोला। शब्द स्वरूप आप गिरधारी, चीन्हें से मोक्ष पावें नर नारी। धीसाराम के जाऊ बलिहारी, जन जीता की बाट सुधारी।

अदली आरती अदल अपारी, सुखसागर में सुमति विचारी। उस सद्‌गुरू को मैं बलिहारी, कर्म भर्म से लिये उबारी।

बन्दी छोड़ गुरू प्रगटे। श्री धीसा सन्त मुरारी। पांच हजार की संधिपर। करी भक्ति जारी। जीतादास आधीन के । मेटे दुख भारी।


अनेक रंग एको सुखवासी, पूरण पूरुष मिले अविनाशी। पंचल नारी पिया सुख वासी, पिय पिय करती पिय संग राची

करम कोटि की कट गई फांसी, ना वहां शादी नहीं उदासी। करम भरम से रहता न्यारा, ऐसा कहिये अलख अपारा।

जहां ब्रह्मा विष्णु नहीं है न्यारा, महादेव का मैल उतारा। बिना नौर से अंग पखारा. ध्रुव प्रहलाद नहीं है न्यारा।

साधु संग कर मिल गया प्यारा, बिन संतो के नहीं गुजारा। नानक नन्हा हुये पहिचाना, अगम महल आसन कर जाना।

मीरा मेर छोड़ दी याही, निर्मल होकर भक्ति पाई। वाजिन्दा को नाम सहारा, राज पाट तज दिना सारा।

सुलतानी की बन्द छुड़ाई, बांदी हो सेजां पर आई। सूजा सैना सैन पिछानी, सदना वस्तु आदि की जानी।

पीपाजी ने ऐसा पीया, अपना हिया खोल भी दिया। गोरख दत्त आदि के योगी, आप ही रचते आपहि भोगी।

कहता करता है कबीरा, रहता सहता सकल शरीरा। सब संतो की स्तुति करूं, मेहर करी रघुवीर।

घीसा संत गरीब की हरदम बांधो धीर। सत है जहां दत्त हे काया माय कबीर।

सत्य पुरूष साहब धनी सोई सबके पीर। दया जहां दादू रहें सोई अगम अगाथ।

नानक नन्हा माहि है हरिजी के हर्ष न शोक। रैदास रहे रैसान में शीतल की शुद्ध चाल।

गरीब दास गहि के मिले धन्ना धीरज माहि। मेर नहीं मीरा जहां भय नहीं वाजिन्द।

सुलतानी रहता सबर में जनक विदेह जनमाहिं। शबरी गम में लीन है सेऊ के सिर नाहि।

सांचो में नरसी रहे बेहद में मन्सूर। दूजा कमी नआवसी सो आशिक भरपूर।

लखमा लेखा नाम का दूजा नहीं व्यवहार। बुराभला लागे नहीं जिनका हरि से प्यार।

पीपा रहे प्रेम में संशय नहीं जहां सैन। निश्चय में रहे नामदेव युगन युगन के संत।

रंका बंका छोड़ के ढूंढा सीधा पंथ।

क्षमा जहां शीतल रहे बालमिक बलवन्त । तर्क जहाँ तुलसी रहै वहाँ ही भगत प्रहलाद।

नेम जहां ही अनूपसी ध्रुव भी धुर की जान। जहां आनन्दी नामकी वहां ही नन्द के कान्ह।।

नवों नाथ रहे नर शील में जहां गुरू वहां ज्ञान। धर्मदास रहे ध्यान में वचन बंधे हरिचन्द्र ।।

जतसत में रहे ज्योतिराम वृन्दावन के माहिं। नामा रहता नाभि में वहां ही दास मलूक ।।

वचन गुरू का शोध ले कभी न खोयेगा चूक। सदना रहता सिदक में करणी माहिं कमाल।।

मैं तजकर घीसा मिले मान बढ़ाई डार। महादेव में देख लो मन के तजो विकार।।

जड़ भरत का द्दढ़मता तीन लोक टकसार। अष्टावक्र नाम का हरदम करो विचार।।

वहीं कमाली जानिये जहां ब्रह्म दरबार। मैंने कहा कि मैं अपना गुरु पीर हूं।।

घीसा गुरू साहेब मिले सिर पर सिरजन हार। जीतादास आधीन को गुरू बक्शो नाम विचार।।

गरीब सत्यवादी सब संत है आप आपने धाम। आजज की अरदास है. सब संत प्रणाम।।

बोलो साधो सतसाहेब (इति आरती)

 Last Date Modified

2025-07-22 16:18:58


Total Visitors
visitor counters
Powered by satsahib.jw.lt
XtGem Forum catalog