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{Ghisa Panthi Ashram Samalkha Panipat}


( Satguru Ratiram Ji Maharaj Gudari Wale Moji Ram )



{घीसा पंथी आश्रम समालखा पानीपत (सतगुरु रति राम जी महाराज गुदड़ी वाले मौजी साहेब}

सत साहेब जी.🙏

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अक्टूबर तालिक 2025

October Table
सत्संग की तारीख
Date Of Satsang

अक्टूबर 5, 2025,रविवार(शुक्ल चतुर्दशी)

पूर्णिमा की तारीख
DATE OF PURNIMA

अक्टूबर 6, 2025, सोमवार (आश्विन पूर्णिमा )

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बन्दीछोड़ गरीबदास जी ने अपनी अमृतमयी वाणी में समाज के प्रत्येक दृश्टिकोण को लेकर अपनी रचनाओं को सदुपदेश के रूप में प्रस्तुत किया है। हम हिन्दुस्तान के निवासी हैं। हमारी प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति में हमारे भोजन व खाद्य पदार्थोे में अनाज का स्थान सबसे ऊपर है। वैसे प्राचीन काल में मनुश्य (आदि मानव) ज्यादातर कच्चा-पक्का मांस व पेड़ों की छाल व पत्ते आदि खाकर अपनी उदरपूर्ति करता था।

परन्तु जब से मनुश्य सभ्यता की तरफ बढ़ा है, तब से अनाज की पैदावार बढ़ती गई है। आज हमारे देश में (विशेषकर उत्तरी-मध्य भारत में) विभिन्न किस्मों के अनाज उगाये जाते हैं और हम उनसे बने पदार्थ खाते हैं। हमारे हिन्दुओं में मांस-अण्डे आदि के सेवन का सभी संतो व बुद्धिजीवियों ने कमोवेश विरोध ही किया है। खासतौर पर कबीर व कबीर से प्रेणित संत व भक्त तो मांस-अण्डे आदि के कट्टर विरोधी हैं। इसलिए बन्दीछोड़ गरीबदास जी ने
अनाज को ही खाद्य पदार्थों का राजा बताया है तथा अनाज के बराबर हीरे-मोती को भी तुच्छ बताया है। गरीबदास जी ने अन्नदेव की छोटी आरती में जो अपने अमूल्य वचन कहे हैं,
नीचे उन्हीं का व्याख्यान कर रहा हूं:- 


आरती अन्नदेव तुम्हारी, जासैं काया पलै हमारी । रोटी आदि रू रोटी अन्न, रोटी ही कूं गावैं सन्त ।। 


बन्दीछोड़ गरीबदास जी की वाणी में अन्नदेव की दो आरतियां हैं एक छोटी व एक बड़ी। छोटी आरती का अर्थ बता रहा हूू। अन्नदेव की छोटी आरती को भोजन के उपरान्त पढ़ा जाता है। बन्दीछोड़ गरीबदास जी ने अन्न की महिमा का गुणगान करते हुए कहा है कि हे अन्न देव, मैं तुम्हारी आरती अर्थात पूजा अर्चना करता हूू क्योंकि तुम्हारे सेवन के कारण ही हमारी ये काया बढ़ती व पलती है। सृश्टि के शुरू से अंत तक अन्न का महत्व रहता है। हमारे जीवन में भी आदि से अन्त तक अन्न बहुत महत्वपूर्ण है। मां अन्न खाती है, फिर वही अन्न उसके स्तनों में दूध बनकर नवजात शिशु का आहार बनता है। साधारण प्राणी के साथ-साथ सन्त महापुरूश भी अन्नाहार को ही श्रेश्ठ बताते हैं क्योंकि अन्न सात्विक भोजन है। इसके सेवन से बुरी भावनाएं अपेक्षाकृत कम उठती हैं। 


रोटी मध्य सिद्ध सब साध, रोटी देवा अगम अगाध। रोटी ही के बाजैं तूर, रोटी अनन्त लोक भरपूर।। 



बन्दीछा़ेड गरीबदास जी अन्न की महिमा बताते हुए कहते हैं कि रोटी सभी के लिए आवष्यक है, चाहे साधारण जीव हो, साधु संत हो, अमीर-गरीब सभी के लिए आवष्यक है। जो रोटी का दान करता है, उसकी महिमा का गुणगान नहीं किया जा सकता। रोटी के इस महत्व और महिमा के बाजे इस संसार में चारों ओर बज रहे है और सारे लोकों में रोटी (अनाज) की महिमा भरपूर है।


 रोटी ही के राटा रंभ, रोटी ही के हैं रण खंभ । रावण मांगन गया चून, तातैं लंक भई बेरून।। 


रोटी का महत्व इतिहास की दृश्टि से बताते हुए बन्दीछोड़ गरीबदास जी फरमाते हैं कि रोटी के कारण ही शुरवीरों ने युद्ध में विजय पाई है और रोटी के कारण (गलत भाव के कारण) नाश भी हुआ है। लंकापति रावण सीता का आटा (चून) मांगने के बहाने से अपहरण करके ले गया था, यह अनाज का घोर अपमान था। सो उसको इसका ये दण्ड मिला कि उसकी लंका का नाष हो गया और वह भी मारा गया। 


मांडी बाजी खेलैं जूवा, रोटी ही पर कैरों पांडों मूवा। रोटी पूजा आत्मदेव, रोटी ही परमात्म सेव।। 


रोटी से अभिप्राय आजीविका या तृश्णा भी हो सकता है। गरीबदास जी कहते हैं कि कौरवों-पांडवों ने अपने राज्य की तृश्णा के लिए जुवा खेला और उसका दुखद परिणाम भीशण युद्ध हुआ। जिसके कारण बहुत नुकसान हुआ। रोटी (तृश्णा) के लिए बहुत कुछ हुआ है और हो रहा है। सतगुरू जी कहते हैं कि आत्मा की सन्तुश्टि भी अन्न द्वारा ही होती है अर्थात कोई साधक प्राणी अन्न आदि के सेवन के बिना ज्यादा समय तक जीवित नहीं रह सकता क्योंकि अन्न सात्विक आहार है। संक्षेप में आत्मा और परमात्मा दोनों की सेवा के लिए अन्न का बहुत महत्व है। 


रोटी ही के हैं सब रंग, रोटी बिना न जीते जंग। रोटी मांगी गोरखनाथ, रोटी बिना न चले जमात।। 


इस सृश्टि में हमारी प्राथमिकता, आवष्यकता रोटी है। रोटी के बिना न तो कोई मेहनत कर सकता है, न ही किसी युद्ध में विजय प्राप्त की जा सकती है। सुप्रसिद्ध गोरखनाथ जी ने रोटी की भिक्षा की और अपनी जमात (मंडली) को भोजन कराया। 


रोटी कृष्ण देव कूं पाई, सहंस अठासी की क्षुधा मिटाई। तन्दुल विप्र कुं दिए देख, रची सुदामा पुरी अलेख ।। 


भगवान श्रीकृश्ण ने द्रोपदी को एक ऐसा बर्तन दिया था, जिसमें से भोजन आदि स्वयंमेव आते थे, जब तक कि शाम को उसे धो कर न रख दिया जाए। एक बार द्रोपदी ने जब बर्तन धो दिया, तो दुर्वासा ऋशि अठासी हजार ऋशियों के साथ आए और भिक्षा मांगने लगे। तब उस विकट घड़ी में भगवान श्रीकृश्ण ने उस बर्तन में लगे साग के एक तुनके को पानी में घोलकर पिया, तो अठासी हजार ऋशियों की भूख तृप्त हुई। इसी प्रकार गरीबी से तंग आकर, जब सुदामा (विप्र ब्राह्मण) ने भगवान श्री कृश्ण को अनाज (धान) के कुछ दाने सप्रेम भेंट किये, तब भगवान ने सुदामा को बहुमूल्य पदार्थों व धन दौलत से भरपूर कर दिया। उपरोक्त दोनों उदाहरणों द्वारा गरीबदास जी ने अन्न की महिमा बताई है। 


आधीन बिदुर घर भोजन पाई, कैरों बूड़े मान बड़ाई। मान बढ़ाई से हरि दूर, आजिज के हरि सदा हजूर।।


 कौरवों और पांडवों में समझौता करवाने के उद्देष्य से जब भगवान श्रीकृश्ण दूत बनकर कौरवों के पास गए, तो कौरवों ने राजसी वृति के भोजन भगवान के लिए तैयार किए, परन्तु अभिमान से भरकर बातें की। तब भगवान ने उनके महंगे राजसी भोजन को छोड़ कर दासीेपुत्र विदुर के घर जाकर अति साधारण भोजन किया। सतगुरू गरीबदास जी कहते हैं कि अहंकार करके हम भगवान को खुश नहीं कर सकते। भगवान की कृपा हासिल करने का एकमात्र रास्ता है, दासभाव से रहना। 


बूक बाकला दिए विचार, भये चकवै कईक बार। बीठल होकर रोटी पाई, नामदेव की कला बधाई ।। 


एक कथा है कि किसी सज्जन ने एक असहाय गरीब को अकाल के समय एक बार अंजली मुठीभर चने (अनाज) खाने को दिये थे, जिसके पुण्य से वह सज्जन कई बार चक्रवर्ती राजा बना। इसी प्रकार नामदेव जी ने भी भगवान के अनेक रूपों को भोजन कराकर अपने यष को बहुत बढ़ा लिया। 


धना भगत कूं दीया बीज, जाका खेत निपाया रीझ। द्रुपद सुता कूं दीने लीर, जाके अनन्त बढाये चीर ।। 


प्रसिद्ध है कि धन्ना भगत ने बोने वाले बीज (अन्न) को संतो में बांट दिया और खेतों में कंकर बो दिए। भगवान ने प्रसन्न होकर उसके खेत को हरा-भरा कर दिया। इसी प्रकार द्रोपदी ने अंधे व नंगे फकीर को अपनी साड़ी के टुकडे़ को कोपीन बनाने के लिए दिया था, सो विकट घड़ी में भगवान ने उसकी लाज बचाने के लिए साड़ी की अनन्त लम्बाई कर दी। बन्दीछोड़ गरीबदास जी कहते हैं कि अन्न और वस्त्र का दान निरर्थक नहीं रहता। 


रोटी चार भारजा घाली, नरसीला की हुंडी झाली। सांवल शाह सदा का सही, जा की हुंडी तत पर लही।।

 
नरसी भक्त की कथा है। नरसी भक्त के पास कुछ साधु आए और उससे रूपये मांगे। नरसी ने इन्कार कर दिया क्योंकि उसके पास धन था ही नहीं। तब नरसी से हुण्डी लिखने को कहा परन्तु नरसी ने कहा कि हुण्डी तो साहुकारों की चलती है, मैं तो गरीब आदमी हूू। जब साधुओं ने हठ किया, तो नरसी ने अपने ईश्टदेव भगवान श्रीकृश्ण (सांवलशाह) के नाम हुण्डी लिख दी। साधु उस हुण्डी को भुनाने के लिए द्वारका में आए परन्तु उन्हें सांवलशाह नाम का कोई साहुकार नहीं मिला। उधर नरसी के घर में एक वृद्ध भूखा साधु (भगवान श्रीकृश्ण के रूप में) आया और रोटी मांगी। नरसी की घरवाली (भारजा) ने उस साधु को चार रोटियाू खिलाई। उसी समय द्वारका में भगवान ने प्रगट होकर उन साधुओं को हुण्डी का रूपया दिया। भाव यह है कि अन्न के दान से बिगड़े हुए कार्य सिद्व होते हैं। 


जड़ कूं दूध पिलाया जान, पूजा खाय गए पाशाण। बलि कूं जग रची असमेध, बावन होकर आये उमेद।। 


बन्दीछोड़ गरीबदास जी फरमाते हैं कि यदि हमारा भाव षुद्ध हो, तो जड़ या पत्थर रूपी भगवान को हम भोजन करा सकते हैं। राजा बलि के प्रसंग में कहा है कि जब बलि ने अष्वमेघ यज्ञ की, तो इन्द्र को अपना सिंहासन डोलता महसूस हुआ। तब बलि को छलने के लिए भगवान बावन रूप धारण करके आए।


 तीन पैंड़ यज्ञ दिया दान, बावन कूं बलि छले निदान। नित बुन कपड़ा देते भाई, जाकै नौलख बालद आई।। 


बलि राजा ने बावन रूपी भगवान से पूछा कि उन्हें क्या चाहिए। तब भगवान ने तीन पग भूमि दान म मांगी। बलि ने स्वीकृति दे दी। परन्तु बावन रूपी भगवान ने अपने शरीर का आकार इतना बढ़ा लिया कि सारी पृथ्वी भी उनके तीन पगों से छोटी रह गई। तब क्रोधित होकर भगवान ने बलि को पाताल में भेज दिया। दूसरी तरफ कबीर साहब अपने भंडारे में प्रतिदिन वस्त्र बुनते थे, उसे बेचकर संतों के लिए अन्न खरीदते थे और भण्डारा करते थे, सो उनके यहां नौलाख गाड़ीयों में खाद्य सामाग्री भरकर आई। भाव यह है कि अन्न के दान के बराबर कोई दान नहीं है। 
अविगत केसो नाम कबीर, तातैं टूटैं जम जंजीर। रोटी तिमरलंग कूं दीन्ही, तातैं सात पातशाही लीन्हीं।। 
बन्दीछाड़ गरीबदास जी कहते हैं कि उस परमपिता परमात्मा साहिब कबीर का नाम सुमरण करने से जम की जंजीर टूट जाती है। तैमूरलंग (तिमरलंग) मुगलों का पूर्वज था, उसके बारे में एक कथा है कि उसने एक भूखे फकीर को रोटी दी थी, जिसके फलस्वरूप उसकी सात पुष्तों (पीढ़ीयों) ने राज किया। संम्भवतः ये सात पीढ़ीयाू मुगलों की ही होंगी । बाबर, हुमायुू (दो बार बादशाह बना), अकबर, जहाूगीर, शाहजहा, औरंगजेब।


रोटी ही के राज रू पाट, रोटी ही के हैं गज ठाठ। रोटी माता रोटी पिता, रोटी काटै सब ही बिथा।।


 रोटी के दान से राजपाट भी मिलता है, हर प्रकार की मौज हो जाती है अर्थात ठाठ हो जाते हैं। रोटी माता-पिता की तरह हमारी काया को पालने वाली है। गरीबदास जी कहते हैं कि हमें रोटी का दान यथासंभव करते रहना चाहिए। रोटी हमारे शरीर, आत्मा और परमार्थ के लिए अति आवष्यक है। अतः रोटी (अन्न) का अनादर नहीं करना चाहिए ।


 दास गरीब कहैं दरवेशा, रोटी बांटो सदा हमेशा । 



 Last Date Modified

2024-12-17 12:51:00


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